बुद्ध और समाज सुधार: तत्कालीन भारतीय समाज पर प्रभाव

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  • Dr. Manoj kumar Sah Author Author

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गौतम बुद्ध, जिन्होंने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में एक गहन सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक आंदोलन की शुरुआत की, आज भी भारतीय समाज में प्रासंगिक बने हुए हैं। भzले ही समय बदल गया हो, तकनीक विकसित हो चुकी हो, और समाज आधुनिक दिखता हो, लेकिन कई समस्याएँ—जैसे जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता, धार्मिक असहिष्णुता और मानसिक तनाव—अब भी गहराई से मौजूद हैं। वर्तमान भारत विकास के मार्ग पर अग्रसर होते हुए भी सामाजिक और मानसिक असंतुलन से जूझ रहा है। ऐसे में बुद्ध की शिक्षाएँ समाज के लिए एक नैतिक और व्यावहारिक दिशा प्रदान करती हैं। बुद्ध के जीवन और उपदेशों की केंद्रीय भावना है – समता, करुणा, और मध्य मार्ग। उनका यह स्पष्ट संदेश था कि कोई भी मनुष्य जन्म से श्रेष्ठ नहीं होता, बल्कि उसके कर्म, व्यवहार और सोच ही उसकी असली पहचान हैं। इस विचार ने न केवल प्राचीन भारत के कठोर वर्ण व्यवस्था को चुनौती दी थी, बल्कि आज भी यह विचार उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव का सामना कर रहे हैं।1

वर्तमान भारत में सामाजिक जागरूकता पहले से कहीं अधिक है। शिक्षित युवाओं का एक वर्ग समानता, सामाजिक न्याय और संवेदनशीलता की दिशा में सक्रिय है। परंतु अभी भी कई क्षेत्रों में दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को अवसरों से वंचित किया जा रहा है। बुद्ध की समतामूलक दृष्टि आज भी सामाजिक नीति-निर्माण से लेकर ज़मीनी आंदोलनों तक में गूंजती है। बुद्ध का जोर केवल सामाजिक संरचना बदलने पर नहीं था, बल्कि व्यक्ति की आंतरिक चेतना को जगाने पर था। उनका विश्वास था कि जब व्यक्ति भीतर से नैतिक, शांत और विवेकशील होगा, तभी वह बाहरी सामाजिक सुधारों में भागीदार बन सकेगा। आज के समाज में जब लोग तनाव, असंतोष और क्रोध से घिरे हुए हैं, तब बुद्ध की ध्यान विधियाँ—जैसे विपश्यना—मानसिक शांति और आत्मसाक्षात्कार का महत्वपूर्ण साधन बन गई हैं।1

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  • Dr. Manoj kumar Sah, Author

    Assistant Professor

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2025-06-02

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बुद्ध और समाज सुधार: तत्कालीन भारतीय समाज पर प्रभाव. (2025). Siddhanta’s International Journal of Advanced Research in Arts & Humanities, 2(5), 93-105. https://sijarah.com/index.php/sijarah/article/view/9