सांख्यसम्मत कैवल्य में बुद्धि तत्त्व का भूमिका
Keywords:
सांख्य दर्शन, दुःखत्रय, कैवल्य, बुद्धि, बुद्धिबहुत्ववाद, प्रमाणत्रय।Abstract
भारतीय दर्शन सम्प्रदायों में महर्षि कपिल प्रणीत सांख्य दर्शन को आदि दर्शन माना गया है। इस दर्शन को भारतीय शोध समाज के साथ-साथ पाश्चात्य शोध समाज में भी अभूतपूर्ण समादर मिला है। भारतीय सभी आस्तिक और नास्तिक दर्शनों का परम लक्ष्य ही है मोक्ष प्राप्त करना। सांख्य दर्शन के अनुसार त्रिविध दुःखों से ऐकान्तिक व आत्यन्तिक परित्राण पाना ही मोक्ष तथा कैवल्य है। अतः भारतीय अन्य दर्शनों की न्याय यह दर्शन भी तत्त्वज्ञान से कैवल्य प्राप्त करने का वर्णन करता है।
क्या बुद्धि किसी व्यक्ति को कैवल्य प्राप्त करने में मदद कर सकती है? अगर यह उसे कैवल्य प्राप्त करने में मदद कर सकती है, तो कैसे? इस शोध पत्र का उद्देश्य यही है । सांख्य दर्शन के मुख्य ग्रंथों तथा टिकाओं, ब्याख्याओं के समीक्षात्मक अध्ययन के आधार पर इस शोध पत्र को प्रस्तुत किया गया है।
सांख्य दर्शन में पुरुष के मोक्ष प्राप्ती में प्रकृति को सहायक रुप में दिखाया गया है परन्तु सांख्य कारिका सहित इसके सभी भाष्य-वृत्ति-टीका-टिप्पनियों के गंभीर अध्ययन से पता चलता है कि इस दर्शन में ‘पुरुष बहुत्ववाद’ के साथ-साथ ‘बुद्धि बहुत्ववाद’ भी सिद्ध होता है। अतः एक व अद्वितीय प्रकृति से विशेष एक पुरुष का कैवल्य प्राप्त होना सम्भव नहीं, अतएव विशेष एक बुद्धि ही विशेष एक पुरुष का कैवल्य प्राप्त करवाने में सहायता कर सकता है।
इस दर्शन के अनुसार कैवल्य एक प्रकिृया है-‘‘व्यक्ताव्यक्तज्ञविज्ञानात्’’ अर्थात् व्यक्त, अव्यक्त एवं ज्ञ का विशिष्ट ज्ञान अर्थात् ‘विवेकख्याति’ से पुरुष को कैवल्य प्राप्त होता है। अतः ‘व्यक्त’, ‘अव्यक्त’ और ‘ज्ञ’ का विशिष्ट ज्ञान कैसे होता है, यह जानना अनिवार्य है। प्रस्तुत शोध पत्र में.... दृष्टादि त्रिविध प्रमाणों के द्वारा ही दृष्ट तथा अदृष्ट सभी विषयों का स्वरुप ज्ञान सम्भव होता है और यह स्वरूपज्ञान ही ‘व्यक्ताव्यक्तज्ञ’ का विशिष्टज्ञान में सहायता करता है एवं त्रिविध ज्ञान प्रक्रिया में ‘अध्यवसाय स्वरुप बुद्धि’ का भूमिका महत्वपूर्ण है।
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