सारंगढ़ रियासत में ब्रिटिश नियंत्रण और उसका प्रभाव (अठारहवीं शताब्दी से भारतीय संघ में विलय तक)
Keywords:
सारंगढ़ रियासत, ब्रिटिश , अठारहवीं शताब्दी, भारतीय संघAbstract
भारत का इतिहास विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि से भरा हुआ,जिसमें रियासतों का एक महत्वपूर्ण स्थान है। भारतीय रियासतें जिन्हें विशेष रूप से ब्रिटिश राज़ के दौरान व्यवस्थित किया गया था, अद्वितीय प्रशासनिक और सांस्कृतिक संरचना का प्रतिनिधित्व करती है। ब्रिटिश शासन से पूर्व ये रियासतें स्वतंत्र थी और स्थानीय राजाओं के अधीन संचालित होती थी। अधिकांश भारतीय रियासतें,मुगलों तथा मराठों के सामंत या जागीरदार हुआ करते थे। जैसे - जैसे मुगल तथा मराठा शासक कमजोर होने लगे वैसे - वैसे सामंत अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र शासन करना शुरू कर दिए। ठीक उसी समय भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन एक व्यापारिक संस्था के रूप में हुआ। 18 वीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी व्यापारिक हितों को बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाया। आंतरिक संघर्ष,क्षेत्रीय रियासतों का विद्रोह और विदेशी आक्रमणों के कारण मुगल साम्राज्य कमजोर हो चुका था। इसी कमजोरी का फायदा उठा करके ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाना शुरू कर दिया। प्लासी की लड़ाई तथा बक्सर के युद्ध से कंपनी ने बंगाल पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। इसके बाद कर्नाटक युद्ध के माध्यम से कंपनी ने दक्षिण भारत में भी अपनी शक्ति बढ़ा ली। उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में कंपनी का वर्चस्व देशी रियासतों तक फैलने लगा। ब्रिटिश संसद का पूर्ण सहयोग और राजनैतिक मार्गदर्शन से कंपनी फल - फूल रहा था। कंपनी ने भारतीय शासकों को संरक्षण देना शुरू कर दिया और यहीं से भारतीय रियासतें परतंत्रता के बंधनों में बंध गई। औपनिवेशिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप, ब्रिटिश भारत और देशी रियासतों से मिलकर बना था। ब्रिटिश भारत का आशय उन क्षेत्रों से था, जो इंग्लैंड के शासक के राज्य के अंतर्गत आते थे और इनका प्रशासन गवर्नर जनरल या गवर्नर जनरल के द्वारा नियुक्त अधिकारियों के द्वारा चलता था।
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